नटराज की मूर्ति की विशेषताएं || कला और संस्कृति || भारत का इतहास

नटराज की मूर्ति की विशेषताएं

 

नटराज की मूर्ति के ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू है, जो की सृजन की ध्वनि का प्रतीक है। संसार की सभी कृतियाँ डमरू की महान ध्वनि से ही सृजित हुई हैं। इस मूर्ति के ऊपरी बाएँ हाथ में शाश्वत अग्नि है, जो विनाश की प्रतीक है। विनाश सृष्टि का अग्रगामी (precursor) है और सृजन का अपरिहार्य प्रतिरूप है।

निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है, जो आशीर्वाद दर्शाता है और भक्तों के लिए अभयता का भाव आश्वस्त करता है।

निचला बायाँ हाथ उठे हुए पैर की तरफ इशारा करता है और मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है।

शिव यह तांडव नृत्य एक छोटे बौने की आकृति के ऊपर कर रहे हैं। बौना अज्ञानता और एक अज्ञानी व्यक्ति के अहंकार का प्रतीक है।

शिव की उलझी और हवा में बहती जटाएं गंगा नदी के प्रवाह की प्रतीक हैं।

शृंगार में शिव के एक कान में की बाली है जबकि दूसरे में महिला की बाली है। यह पुरुष और महिला के विलय का प्रतीक है और इसे अक्सर अर्द्ध-नारीश्वर के रूप में जाना जाता है। शिव की बांह के चारों ओर एक साँप लिपटा हुआ है। सांप

शिव की बांह के चारों ओर एक साँप लिपटा हुआ है। सांप कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो मानव रीढ़ की हड्डी में निष्क्रिय अवस्था में रहती है। अगर इस शक्ति को जगाया जाए तो मनुष्य सच्ची चेतना को प्राप्त कर सकता है।

शिव की यह नटराज मुद्रा प्रकाश के एक प्रभामंडल से घिरी हुई है जो समय के विशाल अंतहीन चक्र का प्रतीक है।

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Lokesh Tanwar

अभी कुछ ख़ास है नहीं लिखने के लिए, पर एक दिन जरुर होगा....

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