राजा राममोहन राय और ब्रह्मसमाज
राजा राममोहन राय और ब्रह्मसमाज
पृष्ठभूमि:– 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी शिक्षा के कारण बंगाल के शिक्षित युवकों का ध्यान हिंदू धर्म में व्याप्त बुराइयों एवं अंध विश्वासों की तरफ गया। बंगाली बुद्धिजीवियों में राजा राममोहन राय और उनके अनुयायियों ने पाश्चात्य संस्कृति का अध्यन करते हुए उसके बुद्धिवादी एवं प्रजातांत्रिक सिद्धांतों व भावनाओं को आत्मसात किया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में इसी बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका रही। भारत में 19वीं शताब्दी में हुए पुनर्जागरण का प्रमुख कारण अंग्रेजी शासन था जिसने भारत के राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया ।
सांस्कृतिक जागरण
राजा राममोहन राय ( 1772–1833 ई. ) आधुनिक भारत के प्रथम समाज सुधारक थे। उन्हें ‘भारतीय राष्ट्रवाद का जनक’ और ‘आधुनिक भारत के पिता’ भी कहा जाता है। इनका जन्म बंगाल के हुगली जिले में राधानगर में हुआ। राय वास्तव में ‘ अतीत और भविष्य के मध्य सेतु ’ थे। राजा राममोहन राय इस्लाम एकेश्ववरवाद, सूफीमत के रहस्यवाद , ईसाई धर्म के नीतिशास्त्र और पश्चिम के उदारवादी बुद्धिवाद से प्रभावित थे।इन्होंने 10 वर्षों तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने जॉन डिग्बी के अधीन भी कार्य किया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, जातिवाद आदि का विरोध किया एवं विधवा विवाह का समर्थन किया। 1809 ई. में राजा राममोहन राय ने फारसी भाषा में ‘तुहफात–उल–मुवाहिदीन’ (एकेश्वरवादियों का उपहार) नामक पुस्तक का प्रकाशन किया, यह मूर्ति पूजा के विरुद्ध एक लेख है। 1814 ई. में राजा राममोहन राय ने ‘आत्मीय सभा’ का गठन किया। इसमें द्वारकानाथ ठाकुर भी शामिल थे।
राजा राममोहनराय द्वारा प्रकाशित पुस्तकें:–
1. ईसा के नीति वचन शांति और खुशहाली का मार्ग(1820 ई.)
2. हिंदू उत्तराधिकारी नियम
3. संवाद कौमुदी अथवा प्रज्ञाचाँद ( बंगाली भाषा)
4. मिरातुल अखबार अथवा बुद्धि दर्पण ( फारसी भाषा)
राय को भारत में ‘पत्रकारिता का अग्रदूत’ माना जाता है।संवाद कौमुदी किसी भारतीय द्वारा संचालित, संपादित एवं प्रकाशित प्रथम भारतीय समाचार पत्र था।राय ने 1817 ई. में कलकता में हिंदू कॉलेज की स्थापना के ‘ डेविड हेयर ’ का सहयोग किया।
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20 अगस्त, 1828 ई. को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कलकत्ता में की। राय पहले भारतीय थे जिन्होंने समुंद्र पार करके यूरोप की धरती और पांव रखा था । इंग्लैंड में ब्रिस्टल नामक स्थान पर 27 सितंबर, 1833 ई. को राय की मृत्यु हो गई। राय को मृत्यु के बाद ‘महर्षि द्वारिकानाथ टैगोर’ और ‘पंडित रामचंद्र विद्या वागीश’ ने ब्रह्म समाज का संचालन किया। महर्षि द्वारिकानाथ के बाद उनके पुत्र देवेंद्रनाथ टैगोर ( 1817–1905 ई.) ने ब्रह्म समाज का संचालन किया। देवेंद्रनाथ ने कलकत्ता के जोरासांकी में ‘ तत्वरंजिनी सभा’ तथा बाद में ‘तत्वबोधिनी सभा’ की स्थापना की तथा तत्व बोधिनी पत्रिका का (1839 ई.) प्रकाशन किया। देवेंद्रनाथ ने 1843 ई. में ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की। देवेंद्र ने ‘ब्रह्म धर्म’ नामक धार्मिक पुस्तिका का संकलन किया। 1866 ई. में ब्रह्म समाज के पहले विभाजन के बाद देवेंद्रनाथ ने ‘आदि ब्रह्म समाज’ बनाया तथा केशव चंद्र सेन ने ‘भारतीय ब्रह्म समाज’ बनाया।आदि ब्रह्म समाज अपने को हिन्दू धर्म का अंग मानता था, जबकि भारतीय ब्रह्म समाज अपने को सभी धर्मों के समान मानता था ।केशव चंद्र सेन के प्रयासों से ही मद्रास में वेद समाज व महाराष्ट्र में ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना हुई। 1872 ई. में केशवचंद्र सेन ने सरकार से ब्रह्म विवाह अधिनियम पारित करवाया। इसे अंतर्जातीय तथा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम भी कहा जाता है,इसके तहत बाल व बहु विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया।ब्रह्म समाजियों के प्रयास से पारित होने के कारण इसे ब्रह्म विवाह एक्ट भी कहा गया है। केशवचंद्र सेन ने स्त्री शिक्षा के लिए ‘इंडियन रिफॉर्म एसोसिएशन’ की स्थापना की। 1878 ई. केशवचंद्र में अपनी अल्पायु पुत्री का विवाह कुचबिहार के राजा से कर दिया, यह ब्रह्म समाज का उलंघन था । अतः 1878 ई. में ब्रह्म समाज का दूसरा विभाजन हुआ तथा दूसरे गुट ने साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की।
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