ईस्ट इंडिया कम्पनी और बंगाल – ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में कब आई थी

ईस्ट इंडिया कम्पनी और बंगाल

ईस्ट इंडिया कम्पनी एक निजी व्यापारिक कम्पनी थी, जिसने 1600ई. में शाही अधिकार पत्र द्वारा व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल

स्थापना :–

1600ई. के अंतिम दिन महारानी एलिजाबेथ प्रथम के एक घोषणापत्र द्वारा हुई थी।

उद्देश्य :–

यह लंदन के व्यापारियों की कम्पनी थी जिसे पूर्व में व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया था।ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुख्य उद्देश्य धन कमाना था।

विविध :–

1708 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रतिद्वंदी कंपनी ‘ न्यू कम्पनी ’ का ईस्ट इंडिया कंपनी में विलय हो गया था। कम्पनी और उसके व्यापार की देख–रेख ‘ गवर्नर–इन–काउंसिल ’ करती थी।

कम्पनी का भारत आगमन

1608 ई. में कम्पनी का पहल व्यापारिक पोत सूरत पहुंचा, क्योंकि कम्पनी मसालों के व्यापार से शुरुआत करना चाहती थी।

पृष्ठभूमि

सूरत में कम्पनी का पहला व्यापारिक पोत पहुंचा, परंतु पुर्तगालियों के प्रतिरोध और शत्रुतापूर्ण रवैये ने कंपनी को भारत के साथ सहज ही व्यापारिक शुरुआत नहीं करने दी। 1612 ई. में कैप्टन बोस्टन के नेतृत्व में अंग्रेजों के जहाजी बेड़े ने पुर्तगाली आक्रमण को कुचल दिया। इसी के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में सूरत से व्यापार को शुरुआत की।

ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल

मुगलकालीन बंगाल में आधुनिक पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश,बिहार और ओडिशा शामिल थे। बंगाल में डच, अंग्रेज व फ्रांसिसियों ने व्यापारिक कोठियां स्थापित की थी जिनमे हुगली सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।1651 ई. में शाहशुजा से अनुमति लेकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल में हुगली में अपने प्रथम कारखाने की स्थापना की। 1670–1700ई. के बीच बंगाल में ‘अनाधिकृत अंग्रेज व्यापारियों ’ जिन्हे ‘ Interlopers ’ कहा जाता था, ने कंपनी नियंत्रण से मुक्त होकर व्यापार किया जो अंग्रेजों व मुगलों के बीच संघर्ष का कारण बना। अलीवर्दी खाँ ने कलकत्ता व चंद्रनगर में अंग्रेज़ व फ्रेंच किलेबंदी का विरोध किया।

सिराजुद्दौला( 1756–1757 ई.)

1756 ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। सिराजुद्दौला का वास्तविक नाम मिर्जा मुहम्मद था। सिराज के विरोधियों में पूर्णिया का नवाब शौकत जंग(चचेरा भाई), सिराज की मौसी घसीटी बेगम व सेनापति मीर जाफर (अलीवर्दी खाँ का बहनोई) प्रमुख थे। सिराज ने अक्टूबर, 1756 ई. में मनिहारी के युद्ध में पूर्णिया के शौकतजंग को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। कंपनी ने फोर्ट विलियम की बिना इजाजत के किलेबंदी भी कर ली। इन सबसे कंपनी व सिराज के रिश्तों में कड़वाहट आ गई। 15 जून,1756 ई. को नवाब नवाब सिराजुद्दौला ने कलकत्ता पर आक्रमण किया , कलकत्ता के गवर्नर ड्रेक ने फुल्टा टापू पर शरण ली। 20 जून को फोर्ट विलियम पर सिराजुद्दौला ने अधिकार कर 146 अंग्रेज स्त्री–पुरुष व बच्चों को एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया, उनमें से सुबह केवल 23 व्यक्ति ही जीवित बचे थे। इतिहास में इस घटना को ‘काल कोठरी त्रासदी’( black hole Tragedy) कहते है। अक्टूबर 1756ई. में क्लाइव ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया।
अलीनगर की संधि:–09 फरवरी, 1757 को कंपनी व सिराज के मध्य अलीनगर की संधि हुई थी

 

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प्लासी का युद्ध (23 जून, 1757ई.)

अंग्रेजों ने मार्च 1757 ई. में फ्रांसीसी बस्ती चंद्रनगर जीत लिया 23 जून 1757 ई. को बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के दक्षिण में 22 मील की दूरी पर प्लासी गांव में क्लाइव व सिराजुद्दौला की सेना के मध्य युद्ध हुआ। प्लासी बंगाल के नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे है। 28 जून 1757ई. को मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। प्लासी के युद्ध से अंग्रेजों को भारत का सबसे समृद्ध प्रांत हाथ लगा व बंगाल की लूट से अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य की जड़े जमाई। प्लासी के बाद बंगाल का नवाब कंपनी के हाथों में कठपुतली बन गया।

मीर जाफर (1757–1760 ई.)

मीर जाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब बनाया। मीर जाफर ने कंपनी को 24 परगना के जमींदारी नवाब बनाने के उपलक्ष में पुरस्कार स्वरूप दी व मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय से क्लाइव को ‘उमरा’ की उपाधि दिलवाई। 1758 ई. में क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बनाया गया।1760 ई. में बंगाल में गवर्नर ‘वेंसीटॉर्ट’ ने मीर जाफर के स्थान पर मीर कासिम को नबाब बनाया। इस घटना को इतिहास में बंगाल की दूसरी क्रांति के नाम से जाना जाता है। 27 सितंबर, 1760 ई. को कंपनी व मीर कासिम के बीच समझौता हुआ जिसके अनुसार मीर कासिम ने कंपनी को बर्दवान, मिदनापुर व चटगांव के जिले देना स्वीकार किया गया ।

मीर कासिम ( 1760–1763 ई.)

मीर कासिम अलीवर्दी खाँ के उत्तराधिकारियों में सर्वाधिक योग्य था।मीर कासिम अंग्रेजों के हस्तक्षेप से बचने के लिए अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले गया। कंपनी ने मीर कासिम के तेवर देख जुलाई 1763 ई. में मीर कासिम को बर्खास्त कर मीरजाफर को दोबारा नवाब बनाया।मीर जाफर ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय व अवध के नवाब शुजाऊद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक सैन्य गठबंधन बनाया व तीनों की संयुक्त सेना ने 23 अक्टूबर 1764 ई. को बक्सर (बिहार के आरा जिले में स्थित) के मैदान में हेक्टर मुनरो के नेत्तृत्व वाली अंग्रेज सेना से मुकाबला किया। बक्सर विजय से अंग्रेज़ी सत्ता सर्वोच्च रूप से स्थापित हुई। मई 1765 ई. में क्लाइव दूसरी बार भारत का गवर्नर बनकर आया। क्लाइव ने अवध के नबाब शुजाऊद्दौला से 16 अगस्त,1765 ई. को इलाहाबाद की पहली सन्धि की। अगस्त 1765 में ही क्लाइव ने मुगल बादशाह शाह आलम से इलाहाबाद की दूसरी सन्धि की।

बंगाल में द्वैध शासन ( 1765–1772 ई.)

मुगलकाल में प्रांतों में दो प्रमुख अधिकारी होते थे सूबेदार तथा दीवान।सूबेदार का कार्य निज़ामत अर्थात पुलिस व कानून व्यवस्था बनाए रखने का था जबकि दीवान का कार्य राजस्व वसूली का था। कंपनी ने 26 लाख रूपये वार्षिक में शाह आलम से दीवानी कार्य व 53 लाख रुपए वार्षिक में बंगाल के नवाब से बंगाल का निज़ामत का कार्यभार ले लिया। द्वैध शासन के अंतर्गत कंपनी दीवानी व निज़ामत का कार्य भारतीयों से करवाती थी लेकिन वास्तविक शक्तियां कंपनी के हाथों में होती थी। द्वैध शासन के समय बंगाल में हालात खराब हो गए। द्वैध शासन के समय 1770 ई. में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा जिसमे लाखों की तादाद में लोग भूख के कारण मारे गए। इस समय कार्टियर बंगाल का गवर्नर था। क्लाइव के समय मुंगेर व इलाहाबाद के अंग्रेज सैनिकों ने दोहरे भत्ते बंद करने के विरोध में सामूहिक त्यागपत्र देने की धमकी दी। क्लाइव ने उन सैनिकों को दोहरा भत्ता दिया जो बंगाल व बिहार की सीमा से बाहर कार्य करते थे। इस विद्रोह को ‘श्वेत विद्रोह ’ कहा जाता है। 1767 ई. में क्लाइव को इंग्लैंड की सरकार ने लॉर्ड की उपाधि दी।बंगाल राज्य अंग्रेजों के लिए कामधेनु साबित हुआ।

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