नेहरू रिपोर्ट क्या है || नेहरू रिपोर्ट : 1928

नेहरू रिपोर्ट : 1928

नेहरू रिपोर्ट क्या है

पृष्ठभूमि –

कांग्रेस ने जब साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का आह्वान किया तब भारत सचिव लॉर्ड बर्किनहैड ने 24 नवंबर,1927 को भारतीयों के सामने एक चुनौती रखी की वे एक ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष पेश करे जिसे, भारतीय जनता एवं सभी राजनीतिक दलों का समर्थन व सहमति प्राप्त हो।भारतीय मंत्री ने ब्रिटिश संसद के सामने यह कहा कि ‘ भारतीय कभी भी एकजुट होकर संविधान का निर्माण नही कर सकते है ’। 28 मई, 1928 को इसी विषय पर विचार–विमर्श हेतु डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे 29 संस्थाओं ने भाग लिया। 10 मई,1928 को बम्बई में दूसरे सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें एक सात सदस्यीय समिति गठित की गई जिसकी अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की इस समिति को भारतीय संविधान के सिद्धांतों का निर्धारण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए गठित समिति

अध्यक्ष– मोतीलाल नेहरू
अन्य सदस्य– तेजबहादुर सप्रू ( लिबरल पार्टी ), सर अली इमाम, शोएब कुरेशी ( मुस्लिम लीग )
एम एस अणे , एम आर जयकार ( हिंदू महासभा )
मंगल सिंह (सिक्ख), एन एम जोशी ( लेबर ) , जी पी प्रधान ( नॉन ब्राह्मण ) , सुभाष चन्द्र बोस ( कांग्रेस )

नेहरू रिपोर्ट क्या है

सात सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट जुलाई, 1928 में प्रकाशित की , जो ‘ नेहरु रिपोर्ट ’ के नाम से प्रचलित हुई। इसके पश्चात 10 अगस्त, 1928 को यह रिपोर्ट कांग्रेस के अधिवेशन में रखी हुई जिसे सभी ने सहमति से स्वीकार किया। नेहरु रिपोर्ट के संबंध में जी. आर. प्रधान में कहा ‘ सन् 1928 की नेहरू सांप्रदायिकता की भावना मिटाने का उग्र प्रयत्न था।’

नेहरू रिपोर्ट क्या है

नेहरू रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें 

1. केंद्र में पूर्ण रूप से औपनिवेशिक स्वराज्य तथा प्रांतों में पूर्ण उत्तरदायी शासन स्थापित किया जाए ।
2. सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को समाप्त कर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली लागू की जाये। केंद्र व जिन प्रांतों में मुस्लिम अल्पसंख्यक है उनमें कुछ स्थान मुस्लिमों के लिए आरक्षित किए जाए। जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हो ( पंजाब व बंगाल आदि ) वहां यह व्यवस्था लागू नही हो।
3. संघीय व्यवस्था– भारत के लिए संघात्मक शासन ही उपयुक्त बताया गया था कि केंद्र को अधिक शक्तियां प्रदान की जाए।
4. नागरिकों के मूल अधिकारों की लंबी सूची के साथ भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया जाए।
5. केंद्र व राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना हो।केंद्र में द्वि–सदनात्मक व्यस्थापिका हो। प्रतिनिधि सदन (निम्न सदन) तथा सीनेट ( उच्च सदन )
6. भारत में एक प्रतिरक्षा समिति ,उच्चतम न्यायालय तथा लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाए।
7. मुसलमानों की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया कि बम्बई से सिंध को अलग कर, उतर पश्चिमी प्रांतों को भी अन्य प्रान्तों के समान ही अधिकार दिए जाए।
8. देश में उच्चतम न्यायालय होगा, जो संविधान की व्याख्या करेगा और केन्द्र व प्रान्तों के विवादों पर निर्णय देगा इसी के साथ प्रिवी कौंसिल में अपीलें बन्द होंगी।
नेहरू रिपोर्ट में शामिल कई मौलिक अधिकार बिना किसी बड़े परिवर्तन के भारत के संविधान में भी विद्यमान थे।

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नेहरू रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया

– अगस्त 1928 में लखनऊ के सर्वदलीय सम्मेलन में तो नेहरू रिपोर्ट को सभी ने एक मत से स्वीकार कर लिया था।
–  31 दिसंबर 1928 को दिल्ली में आयोजित सर्वदलीय मुस्लिम सम्मेलन में मौलाना मोहम्मद अली जिन्ना जैसे पृथकवादियों ने एक स्वर में इस प्रतिवेदन का विरोध किया।
– सुभाष चन्द्र बोस, पं. जवाहर लाल नेहरू, सत्यमूर्ति तथा अनेक युवा राष्ट्रवादी भी नेहरु रिपोर्ट से पूर्णतया सहमत नही थें।
– ये लोग औपनिवेशिक शासन के विपरीत पूर्ण स्वाधीनता के पक्ष ने थे।भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु नवंबर,1928 में इन्होंने ऑल इंडिया इण्डिपेंडेंस लीग की स्थापना की।
– दिसंबर, 1928 में आयोजित कलकत्ता सर्वदलीय सम्मेलन में रिपोर्ट को अस्वीकार किया गया।
– सरशफात खां ने कहा ‘नेहरू प्रतिवेदन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रचनात्मक प्रयास था। इसने देश के समक्ष ऐसा आधार रखा जैसा पहले कभी नहीं रखा गया। वस्तुतः नेहरू रिपोर्ट आधुनिक संविधान का प्रारम्भिक रूप थी।’

 

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