1935 का भारत शासन अधिनियम || आधुनिक भारत
भारत शासन अधिनियम : 1935
Government of India Act 1935
1935 का भारत शासन अधिनियम
भारत शासन अधिनियम 1935 भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन एवं वर्तमान की संवैधानिक स्थितियों के उत्पन्न होने के लिए एक सशक्त कदम साबित हुआ। भारत शासन अधिनियम एक लंबा चौड़ा दस्तावेज था। इस अधिनियम द्वारा भारतीय संघ की स्थापना हुई और भारत में द्वैध शासन स्थापित हुआ। गवर्नर जनरल को कुछ महत्वपूर्ण अधिकार देकर संघीय व्यवस्थापिका को शक्तिहीन बनाया गया। इस अधिनियम द्वारा प्रांतों को पूर्ण स्वायतता प्रदान की गई। कांग्रेस तथा अन्य राजनैतिक दल इस अधिनियम से संतुष्ट नही हुए। देशी रियासतों के शासकों ने इस अधिनियम के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई अतः इस अधिनियम का संघीय भाग लागू नही हो सका। प्रांतीय स्वायत्तता का इतना विरोध नही हुआ अतः इस अधिनियम को प्रांतीय क्षेत्रों में 1 अप्रैल, 1937 में लागू कर दिया गया।
इस अधिनियम के बनने की शुरुआत साइमन कमीशन की नियुक्ति के साथ ही हो गई थी। मार्च,1933 में ब्रिटिश सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया जो 1935 के अधिनियम के निर्माण की दिशा में एक कदम था। इस समय भारत सचिव सैमुअल होर थे। श्वेत पत्र पर विचार करने के लिए लॉर्ड लिनलिथगो की अध्यक्षता में ब्रिटिश संसद के दोनो सदनो की एक संयुक्त प्रवर समिति का गठन किया गया। प्रवर समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय संघ की स्थापना तभी हो सकती है जब इसमें कम से कम 50 प्रतिशत राज्य शामिल है। प्रवर समिति की रिपोर्ट के आधार पर 2 अगस्त,1935 को भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ।
1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों का द्वैध शासन (1919 के अनुसार) अब केंद्र के लागू कर दिया गया। 1935 के अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अब तक का सबसे बड़ा अधिनियम था। इस अधिनियम में 321 धारायें व 19 परिशिष्ट थे। यह अंग्रेज़ों द्वारा भारत में लागू किया गया अंतिम संवैधानिक प्रयास था जो सबसे लंबे समय तक कार्यरत रहा। 1935 के अधिनियम के आधार पर ही भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण किया गया। 1935 के अधिनियम द्वारा बर्मा को भारत से पृथक किया गया तथा अदन को ब्रिटिश भारत के नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया। बरार को मध्य प्रान्त में शामिल किया गया। दो नए प्रांतों उड़ीसा व सिंध का निर्माण हुआ। एक संघीय अदालत की स्थापना भी हुई। 1935 के अधिनियम “ संवैधानिक निरंकुशता ” का प्रतीक था, इसमें इतने अधिक नियंत्रण थे कि भारत की राजनीतिक शक्ति ब्रिटिश सरकार के हाथों में बनी रही। नेहरू ने यह कहा कि 1935 का अधिनियम एक ऐसा यंत्र था इसमें इंजन नही था। 1935 के अधिनियम के नवे भाग द्वारा संघीय लोक सेवा आयोग एवं प्रांतीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई।
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1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं
1. 1935 के अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गई।
2. इस संघ को ब्रिटिश भारतीय प्रांत कुछ भारतीय रियासतें जो संघ में शामिल होना चाहती थी मिलकर बनाया गया था।
3. 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त करके केंद्र में द्वैध शासन लागू किया गया।
4. केंद्रीय सरकार की कार्यकारिणी शक्ति गवर्नर जनरल में निहित थी
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