आर्थिक न्याय सम्बंधित निदेशक तत्व || निति निदेशक तत्व || अनुच्छेद 38 से अनुच्छेद 39

आर्थिक न्याय सम्बंधित निदेशक तत्व

(अनु. 38 एवं 39)

भारतीय संविधान के निर्माताओं का उद्देश्य भारत में एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था और इस दृष्टि से अनु. 38 एवं 39 के तहत आर्थिक सुरक्षा और आर्थिक न्याय के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी है।

सामाजिक और आर्थिक न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था की स्थापना अनुच्छेद 38 (1) तथा राज्य द्वारा आय की असमानता को कम करने का प्रयास अनुच्छेद 38 (2)
यथा –
– अनुच्छेद 38(1) के तहत राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह लोक कल्याण की अभिवृद्धि करके ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करने का प्रयास करेगा जिनमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुनिश्चित हो सके।

– इसी तरह अनुच्छेद 38(2) का निर्देश है कि राज्य विशेष रूप से आपसी असमानता को कम करने के लिए प्रयास करेगा और न केवल व्यक्तियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में संलग्न लोगों के समूहों के बीच प्रतिष्ठा, सुविधाओं तथा अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
ध्यान दे कि अनु. 38(2) को 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया है। *

– अनुच्छेद 39 के तहत यह निर्देश दिया गया है कि
(i) कि राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा कि पुरुष और स्त्री नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो,पुरुषों और स्त्रियों को दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त हो,पुरुष और स्त्री कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और बालकों को स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दिए जाएँ तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाये । अनुच्छेद 39 (क)*

(ii) राज्य देश के भौतिक साधनों के स्वामित्व और नियन्त्रण की ऐसी व्यवस्था करेगा कि अधिक से अधिक सार्वजनिक हित हो सके। – अनुच्छेद-39 (ख)*

(iii) राज्य इस बात का भी ध्यान रखेगा कि सम्पत्ति और उत्पादन के साधनों का इस प्रकार केन्द्रीकरण न हो कि सार्वजनिक हित को किसी प्रकार की हानि पहुँचे। -अनुच्छेद 39 (ग)*

(iv) राज्य प्रत्येक नागरिक को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान करेगा, अनु. 39 (घ) *।

ज्ञातव्य है कि संसद द्वारा अनु. 39 (घ) के अनुसरण में ‘समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976’ पारित किया गया है।

(v) राज्य ऐसी व्यवस्था करेगा कि श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो तथा आर्थिक विवशतावश कोई नागरिक ऐसे रोजगार में न जाय जो उसकी आयु व शक्ति के अनुकूल न हो. अनुच्छेद 39 (ङ)

(vi) राज्य द्वारा बच्चों को स्वस्थ रूप में विकास के लिए अवसर और सुविधाएं प्रदान की जायेंगी, उन्हें स्वतन्त्रता और सम्मान की स्थिति प्राप्त होगी, और बच्चों तथा युवकों की शोषण से तथा भौतिक या नैतिक परित्याग से रक्षा की जायेगी। -अनु.-39 (च)
ध्यातव्य है कि अनु. 39 (च) 42वें संविधान संशोधन अधि. 1976 द्वारा संविधान में जोड़ा गया है।
• ज्ञातव्य है कि अनुच्छेद 38 तथा 39 में विधिशास्त्र के ‘वितरण न्याय’ (Distributive Justice) का सिद्धान्त निहित है। * वितरण न्याय का तात्पर्य नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता को समाप्त करना है।

• सर्वोच्च न्यायालय ने रनधीर सिंह बनाम भारत संघ’ (1982) के मामले में यह धारित किया है कि यद्यपि समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धान्त संविधान के अधीन मूल अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक निदेशक तत्त्व है परन्तु निश्चय ही यह एक सांविधानिक लक्ष्य है। अतः इसके उल्लंघन पर न्यायालय अनुच्छेद 32 के अधीन रिट जारी कर सकता है।

• इसी प्रकार तमिलनाडु राज्य बनाम अबु कवर बाई (1984) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि राज्य में यातायात का राष्ट्रीयकरण करने के लिए बनाया गया कानून संवैधानिक है क्योंकि वह अनु. 39(ख) और (ग) में वर्णित नीति निदेशक तत्त्वों के अनुपालन में बनाया गया है।

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Lokesh Tanwar

अभी कुछ ख़ास है नहीं लिखने के लिए, पर एक दिन जरुर होगा....

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