साइमन कमीशन : 1927–28 || आधुनिक भारत

साइमन कमीशन : 1927–28

पृष्ठभूमि–

1919 ई. के ‘ भारत सरकार अधिनियम ’ में यह व्यवस्था की गई थी, कि 10 वर्ष के उपरांत एक ऐसा आयोग नियुक्त किया जाएगा ,जो इस अधिनियम से हुई प्रगति को समीक्षा करेगा। भारतीय भी द्वैध शासन(प्रांतों में) से ऊब चुके थे वे इसमें परिवर्तन चाहते थे।
08 नवंबर,1927 में वायसराय लॉर्ड इरविन ने महात्मा गांधी को बुलाकर यह सूचना दी की भारत में वैधानिक सुधार लाने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है जिसके लिए एक कमीशन बनाया गया है जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन होंगे।

स्थापना –

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन की एक मुख्य विशेषता यह थी की साइमन कमीशन के सभी सात सदस्य ब्रिटेन की संसद से मनोनित सदस्य यानी केवल अंग्रेज़ ही थे, यही कारण है की इसे ‘ श्वेत कमीशन ’ भी कहा गया। गांधीजी ने इसे भारतीयों का अपमान माना,उनका अनुभव था कि इस तरह के कमीशन स्वतंत्रता की मांग को टालने के लिए बनाए जाते रहे है सभी नेताओं का इस विषय में यही मत था की साइमन कमीशन/simon commission आखों मे धूल झोंकने का एक तरीका मात्र है। चारों तरफ से साइमन कमीशन का विरोध देख कर भी सरकार अड़ी रही।

साइमन आयोग 

भारतीय विधिक आयोग(साइमन कमीशन) भारत पहुंचा।भारतीय आंदोलनकारियों ने साइमन कमीशन का घोर विरोध किया था और साइमन वापसी के नारे लगाए।साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले इस आंदोलन में कांग्रेस के साथ साथ मुस्लिम लीग ने भी भाग लिया। 11 दिसंबर, 1927 को इलाहाबाद में हुए सर्वदलीय सम्मेलन में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह था की इसमें एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। यद्यपि इस समय ब्रिटिश संसद में लॉर्ड सिन्हा तथा श्री सकलातवाला दो भारतीय सदस्य थे।

लॉर्ड इरविन के सुझाव पर ही ब्रिटिश संसद ने भारतीयों को साइमन कमीशन के बाहर रखा था। दिसंबर, 1927 में मुस्लिम लीग के दिल्ली अधिवेशन में जिन्ना ने चार प्रस्ताव (दिल्ली प्रस्ताव) रखे जिन्हे वे भारत के संविधान के भावी मसौदे में शामिल करना चाहते थे। कांग्रेस ने दिसंबर, 1927 के मद्रास अधिवेशन में दिल्ली प्रस्तावों को स्वीकार कर साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया, इससे साइमन कमीशन के बहिष्कार पर सर्वसम्मति को अधिक बल मिला। तेज बहादुर सप्रू के लिबरल फेडरेशन,मुस्लिम लीग ,किसान मजदूर पार्टी, हिंदू महासभा, फिक्की आदि ने भी साइमन कमीशन के बहिष्कार के समर्थन किया। बाद में मुहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग का एक गुट साइमन कमीशन का समर्थक बन गया। मद्रास की जस्टिस पार्टी और पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी ने भी आयोग का समर्थन किया। डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में संचालित डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन (दलित वर्ग संघ) और हरिजनों के कुछ संगठनों ने साइमन कमीशन का सहयोग किया।

03 फरवरी, 1928 को आयोग बंबई पहुंचा तो उसे काले झंडे दिखाए गए व simon go back के नारे लगाए गए। लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में आयोग विरोधी भीड़ पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया व लालाजी को क्रूर तरीके से लाठियों से पिता जिस से कुछ दिन बाद लालाजी की मृत्यु हो गई। साइमन कमीशन ने दो बार साइमन कमीशन ने पूरे भारत को यात्रा की। दिसम्बर 1928 की रात को निर्णायक फैसले हुए। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल, दुर्गा भाभी आदि एकत्रित हुए। आजाद, राजगुरु, सुखदेव और जयगोपाल सहित भगत सिंह को यह काम सौंपा गया।उप-अधीक्षक सांडर्स दफ्तर से बाहर निकला। उसे ही स्कॉट समझकर राजगुरु ने उस पर गोली चलाई, भगत सिंह ने भी उसके सिर पर गोलियां मारीं। अंग्रेज सत्ता कांप उठी। अगले दिन एक इश्तिहार भी बंट गया, लाहौर की दीवारों पर चिपका दिया गया। लिखा था- हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध ले लिया है और फिर “साहिब” बने भगत सिंह गोद में बच्चा उठाए वीरांगना दुर्गा के साथ कोलकाता जेल में जा बैठे। साइमन कमीशन ने मई 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिस पर लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलनों में विचार हुआ।

साइमन रिपोर्ट में प्रांतों में उत्तरदायी शासन लागू करने की तथा बर्मा को भारत से पृथक करने जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशें की। साइमन रिपोर्ट आगे चलकर 1935 के भारतीय संविधान अधिनियम का आधार बना, भारत के संवैधानिक इतिहास में साइमन कमीशन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।

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साइमन कमीशन की सिफारिशें–
दूसरी तरफ विरोधों के बावजूद आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी जो मई 1930 में प्रकाशित हुई. कमीशन दो बार भारत आया तथा अपनी रिपोर्ट तैयार करने में इसे दो वर्ष से अधिक समय लगा। इस रिपोर्ट की सिफारिशें निम्न थीं
– प्रांतों में द्वैध शासन की समाप्ति और प्रांतीय स्वायत्तत्ता की स्थापना
– मतदान और विधान सभाओं का विस्तार
– संघ शासन की स्थापना
– सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का पूर्ववत्त जारी रहना
– केंद्रीय क्षेत्र में अनुत्तरदायी शासन
– केंद्रीय व्यवस्थापिका का पुनर्गठन
– वृहद भारत परिषद की स्थापना
निःसंदेह रिपोर्ट निरर्थक और रद्दी कागज के बराबर थी परंतु भारतीय समस्याओं के अध्ययन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण प्रलेख था। साइमन कमीशन का एक महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि इसने अप्रत्यक्ष और अस्थायी तौर पर ही सही देश, के विभिन्न समूहों और दलों को एकजुट कर दिया।

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Lokesh Tanwar

अभी कुछ ख़ास है नहीं लिखने के लिए, पर एक दिन जरुर होगा....

3 thoughts on “साइमन कमीशन : 1927–28 || आधुनिक भारत

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