शेर शाह सूरी जीवन परिचय || सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों सहित | Sher Shah Suri
शेरशाह सूरी (शेर खाँ)
शेर शाह सूरी (1472/86- 1545)
शेर शाह सूरी का जन्म 1472 ईस्वी में हुआ था, वहीं डॉ. कानूनगों के हिसाब से इसका जन्म 1486 ईस्वी में हुआ। शेरशाह सूरी ‘सुर‘ राजवंश का संस्थापक था।
शेरशाह सूरी के बचपन का नाम ‘फरीद खाँ‘ था। फरीद खां द्वारा एक शेर मार देने के कारण बहार खाँ लोहानी ने इन्हें शेर खाँ की उपाधि से नवाजा और अपने पुत्र जलाल खाँ का संरक्षक बनाया। बहार खाँ लोहानी दक्षिण बिहार का सुबेदार था।
बहार खाँ की मृत्यु 1528 में हो गयी इसके बाद शेर खाँ ‘दक्षिण बिहार‘ का सूबेदार बन गया।
शेर खाँ ने मई 1529 में हुए ‘ घाघरा के युद्ध मे‘ जहां बाबर व महमूद लोदी के मध्य युद्ध हुआ, उसमें शेर खाँ ने महमूद लोदी की मदद की थी। इस युद्ध में महमूद लोदी की पराजय हुई।
चौसा का युद्ध
1539 में हुए चौसा के युद्ध हुमायूँ व शेर खाँ के मध्य हुआ, इस युद्व में हुमायूँ को हार का सामना करना पड़ा
इसके बाद 1540 में हुए कन्नौज के युद्धे में भी हुमायूँ को हार का सामना करना पड़ा
इसके बाद शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस समय शेरशाह सूरी की आयु 68 साल थी।

प्रमुख अभियान
गक्खरो से युद्ध
यह युद्ध 1541 मे हुआ। शेरशाह सूरी विजयी
मालवा का अभियान
1542 में शेरशाह सूरी ने मालवा पर अधिकार कर लिया।
रायसीन का अभियान
1543 में शेरशाह सूरी ने रायसीन पर आक्रमण कर वहां के राजपूत शासक पूरणमल को धोखे से मार डाला, इस युद्ध में महिलाओं ने जौहर किया। यह घटना शेरशाह सूरी पर कलंक मानी जाती है।
मारवाड़ का अभियान
5 जनवरी 1544 ईसवी(गिरी-सुमेल युद्ध) में शेरशाह सूरी ने मारवाड़ के शासक रावमालदेव पर आक्रमण किया। इस युद्ध को शेरशाह ने कुटिलता से जीत लिया क्योंकि राव मालदेव को हराना शेरशाह के लिए नामुमकिन था।
इस युद्ध मे राजपूत सरदार जैता व कूपा ने वीरता का प्रदर्शन किया। और वीरगति को प्राप्त हुए।
कालिंजर का अभियान (1545)
यह शेरशाह का अंतिम अभियान था, शेरशाह ने कालिंजर पर सिर्फ इसलिए आक्रमण किया था वह शासक कीरत सिंह की दासी को हथियाना चाहता था लेकिन कीरत सिंह ने देने से मना कर दिया था।
22 मई 1545 कालिंजर अभियान के दौरान ही बारूद का ढेर फटने से शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी।
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