मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की माँग

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की माँग

खिलाफत और असहयोग आन्दोलन में जो हिंदू मुस्लिम एकता देखने को मिली थी वो अविस्मरणीय थी, परंतु धर्म की जड़े अपने पर पसार चुकी थी एवं जल्द ही ये एकता सांप्रदायिकता में तब्दील हो चुकी थी। मुस्लिम लीग ने अगस्त प्रस्ताव के दौरान पाकिस्तान की मांग की परंतु किसी प्रतिक्रिया से ऐसा नही लगा की यह मांग पूरी की जाएगी एवं मुस्लिम लीग द्वारा उस प्रस्ताव को अस्वीकृत किया गया। 

1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए उर्दू कवि इकबाल ने कहा कि ‘ उत्तर पश्चिम भारत का संगठित मुस्लिम राज्य के रूप में निर्माण ही मुझे मुसलमानों का अंतिम निर्णय प्रतीत होता है। 1933 में कैंब्रिज ( इंग्लैंड ) में पढ़ने वाले छात्र चौधरी रहमत अली ने तीसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान एक पर्चा जारी कर पाकिस्तान के एक पृथक मुस्लिम राज्य की कल्पना को जन्म दिया, इस पर्चे का नाम था– ‘ अभी नही तो कभी नही ’ 

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रहमत अली द्वारा प्रस्तावित पाकिस्तान में पंजाब , कश्मीर ,सिंध बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत को शामिल करना था। मुस्लिम लीग ने पृथक राज्य के प्रस्ताव की जांच के लिए 1939 में जफरूल हसन और हसन कादरी की सदस्यता वाली एक जांच समिति को नियुक्त किया। इन लोगो की समिति ने अलीगढ़ योजना तैयार कर पाकिस्तान ,बंगाल हैदराबाद व हिंदुस्तान नामक चार पृथक राज्यों की स्थापना का सुझाव दिया।
1937 के चुनावों में मुस्लिम लीग की बुरी तरह पराजय पर व्यथित होकर जिन्ना ने गांधीजी पर हिंदू राज्य स्थापित करने का आरोप लगा कर । मुसलमानों के लिए आरक्षित 492 प्रांतीय विधानसभा सीटों में से मुस्लिम लीग मात्र 109 सीटों पर जीत हासिल कर सकी , अब मोहमद अली जिन्ना ने सांप्रदायिकता की आड़ में सारे प्रयत्न करने प्रारंभ किया तथा द्वि राष्ट्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया।अब तक मोहम्मद अली जिन्ना एक प्रभावशाली नेता के रूप ने उभर चुके थे ,उन्होंने अपने एक भाषण में कहा की न तो गांधी और ना ही ब्रिटिश हुकूमत को मुस्लिम लोगो पर शासन करने दिया जाएगा हम स्वतंत्र होना चाहते है। 22–23 मार्च को मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में पहली बार पृथक पाकिस्तान राज्य के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया ,परंतु प्रस्ताव में पाकिस्तान शब्द का जिक्र नहीं था।लीग ने यह प्रचार किया कि कांग्रेस सरकार द्वारा मुसलमानों पर घोर अत्याचार हो रहे है। मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की माँग

लीग ने मार्च, 1938 में संयुक्त प्रांत में तथाकथित अत्याचारों की जांच के लिए पीरपुर के राजा मोहम्मद मेंहदी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की पीरपुर ने मुसलमानों पर हिंदुओं के अत्याचारों की बेबुनियाद व निराधार सूची पेश की। संयुक्त प्रांत के गवर्नर ने भी इन रिपोर्टों को निराधार बताया। पृथक पाकिस्तान की मांग को प्रथम बार आंशिक मान्यता 1942 के क्रिप्स प्रस्तावों में मिली। प्रस्ताव में व्यवस्था थी कि ब्रिटिश भारत का कोई राज्य अगर स्वतंत्र होना चाहे तो वह अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित कर सकते है। लाहौर प्रस्ताव को भारतीय राष्ट्रीय प्रेस ने पाकिस्तान प्रस्ताव का नाम दिया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि ‘ भोगौलिक स्थिति से एक दुसरे से लगे हुए प्रदेश आवश्यक परिवर्तनों के साथ इस प्रकार गठित किए जाए ताकि वहां मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक हो जाए।

लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव का विरोध करने वाले मुस्लिम संगठन :–

अप्रैल ,1940 में सिंध के खान बहादुर अल्लाबख्श की अध्यक्षता में दिल्ली में स्वतंत्र मुस्लिम सम्मेलन हुआ जिसमे पाकिस्तान की मांग की आलोचना की गई । जामायत उल उलेमा ए हिंद ने लीग की मांग का विरोध किया।

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भारत के बारें में रोचक तथ्य

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Lokesh Tanwar

अभी कुछ ख़ास है नहीं लिखने के लिए, पर एक दिन जरुर होगा....

One thought on “मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की माँग

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