काँग्रेस का लाहौर अधिवेशन : 1929 व सविनय अवज्ञा आंदोलन
काँग्रेस का लाहौर अधिवेशन : 1929 व सविनय अवज्ञा आंदोलन
1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार को दी गई एक वर्ष की समय सीमा समाप्त होने पर 31 दिसंबर ,1929 को लाहौर में जवाहर लाल नेहरू को अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे नेहरू रिपोर्ट व डोमिनियन स्टेट्स की मांग को रद्द कर दिया और ‘ पुर्ण स्वराज ’ का पहली बार लक्ष्य रखा गया। 1929 में लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस कार्यकारिणी ने गांधीजी को यह अधिकार दिया की वह सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करे। तदनुसार 31 दिसंबर, 1929 को अर्धरात्रि को ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के साथ रावी नदी के तट पर अपार जनसमूह के मध्य जवाहर लाल नेहरू ने नवगृहीत तिरंगा फहराया। इस अवसर पर नेहरू ने कहा कि ‘ब्रिटिश सत्ता के सामने अब अधिक झुकना मनुष्य और ईश्वर दोनो के विरुद्ध एक अपराध मात्र है।’ नेहरू ने अध्यक्ष के रूप में आने भाषण में कहा कि ‘ मैं समाजवादी और गणतंत्रवादी हूं ,राजाओं व अन्य शासकों या उनकी व्यवस्था में मेरा कोई विश्वास नही है जो आधुनिक सम्राट उत्पन्न करती है।’ 2जनवरी ,1930 को कांग्रेस कार्य समिति ने यह निर्णय लिया कि 26 जनवरी, 1930 को ‘ पूर्ण स्वराज दिवस ’ के रूप में मनाया जाएगा तथा प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूम में मनाया जाएगा। पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का नेतृत्व गांधीजी को सौंपा गया।
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सविनय अवज्ञा आंदोलन के तात्कालिक कारण
1. साइमन कमीशन के बहिष्कार आन्दोलन के दौरान जनता के उत्साह को देखकर यह महसूस होने लगा की किसी बड़े निर्णय की आवश्यकता है।
2. सरकार ने भारी विरोध के चलते मोतीलाल नेहरु द्वारा प्रस्तुत नेहरु रिपोर्ट अस्वीकार कर दी इससे असंतोष व्याप्त था।
3. चौरी चौरा कांड ( 1922 ) को एकाएक रोकने से निराशा फैल गई थी,उस निराशा को दूर करने को भी यह आन्दोलन आवश्यक प्रतीत हुआ।
4. क्रांतिकारी आन्दोलन को देखते हुए गांधीजी को दर था कि कही समस्त देश हिंसक आंदोलन की ओर न बढ़ जाए, अतः उन्होंने नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाना आवश्यक समझा।
5. 1929 की आर्थिक मंदी भी एक तात्कालिक कारण थी।
6. सबसे प्रमुख बात यह थी कि देश में सांप्रदायिक स्थिति बहुत खराब हो रही थी एवं इसे जल्द ही नियंत्रित करना आवश्यक था।
30 जनवरी,1930 को गांधीजी ने अपने पत्र ‘ यंग इण्डिया ’ में तात्कालिक वायसराय इरविन के समक्ष 11 सूत्रीय मांगे रखी और शासन को चेतावनी दी की अगर शासन इन मांगों को पूरी नहीं करे तो एक सख्त आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार हो जाए।
ये मांगे इस प्रकार थी–
• सैन्य खर्च व प्रशासनिक खर्चों में 50 फीसदी कटौती।
• सभी राजनैतिक कैदियों की जेल से रिहाई।
• पूर्ण शराब बंदी व नशीली वस्तुओं की बिक्री पर रोक।
• जमीन का लगान आधा कर दिया जाए और उस पर कॉन्सिल का नियंत्रण रहे।
• रूपये का विनिमय दर एक शिलिंग चार पेंस के बराबर हो।
• नमक कर समाप्त हो व नमक पर सरकारी एकाधिकार समाप्त हो।
• तटीय यातायात रक्षा विधेयक पास किया जाए।
इन मांगों को पूरा करने के लिए गांधीजी ने 31 जनवरी,1930 तक का समय दिया।
12 मार्च,1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की शुरुआत आश्रम के 78 अन्य साथियों के साथ की। गांधीजी अपने साथियों के साथ गुजराज के समुद्र तट पर स्थित दांडी ( जिला नौसारी ) ) के लिए दांडी यात्रा पर निकल पड़े। 24 दिन में 358 किलोमीटर की यात्रा के बाद 5 अप्रैल,1930 को दांडी में गांधीजी ने समुद्री वाष्पीकरण से बने एक मुठ्ठी नमक उठाकर सांकेतिक रूप से नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की।इस आंदोलन का पूरे देश में व्यापक प्रसार हुआ जिस परिणाम हर क्षेत्र विशेष में देखने को मिला। सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी की दांडी यात्रा की नेपोलियन की एल्बा से पेरिस अभियान से तुलना की। तमिलनाडु में सी. राजगोपालाचारी ने इसी प्रकार का एक मार्च का आयोजन त्रिचुरापल्ली से वेंदारयम तक किया।कांग्रेस की नेता सरोजनी नायडू ने ब्रिटिश सरकार के धरसना(गुजरात) स्थित नमक के कारखाने पर महिलाओं की बड़ी संख्या को लेकर अहिंसक सत्याग्रहियों के मार्च का नेतृत्व किया।
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