जलियांवाला बाग हत्याकांड
जलियांवाला बाग हत्याकांड
पृष्ठभूमि –
13 अप्रैल, 1919 का दिन भारतीय इतिहास में काला दिन के नाम से जाना जाता है। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव डाला तो वो यह घटना थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से प्रसिद्ध इस घटना को ब्रिटिश शासन की क्रूरता के रूप में देखा जाता है। फरवरी, 1919 के अंत में जब रॉलेट एक्ट आया तो उसका व्यापक विरोध हुआ और इन सभी घटनाक्रमों के कारण से पंजाब इस विरोध में सबसे आगे था, रॉलेट एक्ट के खिलाफ में हुआ आंदोलन भारत का पहला अखिल भारतीय आंदोलन था और इसी आंदोलन ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रीय नेता’ के तौर पर स्थापित किया।इसके बाद ही महात्मा गांधी ने एक सत्याग्रह सभा का गठन किया और खुद पूरे देश के दौरे कर निकले ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा समर्थन करें हालांकि गांधी कभी भी पंजाब का दौरा नही कर से, वो पंजाब प्रांत में प्रवेश करने हो जा रहे थे की दिल्ली के पास उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। रॉलेट एक्ट का विरोध करने वाले दो स्थानीय कांग्रेसी नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलु को 9 अप्रैल को गिरफ्तार किया, इसी के बाद ही लोगो ने आक्रोश बढ़ा और अपने नेताओं की निर्वासन की खबर ने अमृतसर के लोगो को गुस्से से भर दिया,करीब पच्चास हजार की संख्या में लोग जुटे और 10 अप्रैल को अपने नेताओं की रिहाई की मांग करते हुए मार्च निकाला इस मार्च के दौरान सैनिकों से मुठभेड़ में लोगों की जान गई, ठीक इसी दिन जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर को आदेश दिया गया कि वो इन हिंसक घटनाओं को संभालने के लिए फौरन अमृतसर पहुंचे,नागरिक प्रशासन ढह चुका था।
प्रकरण –
13 अप्रैल को लगभग शाम के चार बज रहे थे उसी समय ब्रिटिश सरकार के जनरल डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास स्थित जलियांवाला बाग में बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए इकठ्ठे हुए हजारों मासूम लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। ये गोलीबारी करीब 10 मिनट तक बिना रुके चलती रही। इस नरसंहार में पूरा मैदान जहां लाशे बिछी थी , चारों तरफ खून खराबा हो रखा था। ये अपने आप में एक अलग स्तर की क्रूरता थी। इस शर्मनाक घटना में हजारों मासूमों ने अपनी जान गंवा दी।
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परिणाम –
जलियांवालाबाग के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि त्याग दी और वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकर नायर ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने जलियांवाला बाग प्रकरण की जाँच के लिए लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में हंटर कमेटी नियुक्त की। हंटर कमेटी ने जनरल डायर को दोषमुक्त कर दिया,सरकार ने तो हंटर कमेटी की रिपोर्ट आने से पूर्व ही दोषी लोगो को बचाने के लिए ‘ इंडेमिनिटी बिल ’ पास कर दिया था। सजा के रूप में जनरल डायर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन ब्रिटिश हाउस ने जनरल डायर की प्रशंसा की गई। उसे ‘ ब्रिटिश साम्राज्य का शेर ’ कहा गया ( अंग्रेजी इतिहासकारों के अनुसार ) डायर को sword of honour और 2600 पौंड की धन राशि दी गई (मॉर्निंग पोस्ट नामक अखबार ने 30 हजार पौंड की धन राशि प्रकाशित की)। कांग्रेस ने जलियांवाला बाग नरसंहार की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। समिति के अन्य सदस्य थे– मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, सी. आर. दास, तैयब जी और जयशंकर। जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय उधम सिंह वही मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी ,उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला जरूर लेंगे।13 मार्च,1940 को उन्होंने लंदन के कैक्स्टन हॉल में इस घटना के की अगुवाई करने वाले ब्रिटिश गवर्नर माइकल ऑ ड्वायर को गोली चलाकर हत्या कर दी, ये भारतीयों का प्रतिशोध था। इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर भी गहरा प्रभाव डाला।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने जलियांवाला बाग हत्याकांड स्मारक के बारे में विजिटर्स बुक में लिखा की ये नरसंहार ‘ ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।’
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