वैवेल योजना UPSC || वैवेल योजना तथा शिमला सम्मेलन : 1945
वैवेल योजना तथा शिमला सम्मेलन : 1945
वैवेल योजना क्या थी ?
द्वितीय विश्व युद्ध मित्र राष्ट्रों की विजय के पश्चात समाप्त हो गया। तत्कालीन भारतीय वायसराय वैवेल भारतीय गतिरोध दूर करने मार्च ,1945 में इंग्लैंड पहुंचा और भारत की तात्कालिक परिस्थितियों के बारे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल से चर्चा की। वैवेल ने जून, 1945 में सभी कांग्रेसी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया। जून, 1945 को वैवेल भारत वापस आया और यहां आकर भारतीयों के समक्ष एक योजना प्रस्तुत की जिसे वैवेल योजना कहा गया। वैवेल योजना के प्रमुख प्रावधान निम्न है–
1. वायसराय की कार्यकारी परिषद का पुनर्गठन किया जाए जिसमें वायसराय तथा कमांडर–इन–चीफ के अलावा सभी सदस्य भारतीय हो। परिषद में हिंदू व मुस्लिम सदस्यों की संख्या बराबर हो।
2. सीमांत व कबायली मामलों को छोड़कर विदेशी मामले भी परिषद के भारतीय सदस्यों के पास रहेंगे।
3. कार्यकारिणी में मुस्लिम सदस्यों की संख्या हिंदुओं के बराबर होगी।
4. कांग्रेस के नेता रिहा करके जल्द ही शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया जाएगा।
5.युद्ध समाप्ति के बाद संविधान निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। यह अंतरिम व्यवस्था नया संविधान लागू होने तक ही थी।
6. भारत में ब्रिटेन के व्यापारिक व आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए एक उच्चायुक्त नियुक्त किया जायेगा।
7. ब्रिटेन सरकार का अंतिम उद्देश्य भारत संघ का निर्माण कर भारत में स्वशासन की स्थापना करना है।
वैवेल योजना UPSC
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शिमला सम्मेलन क्या है ?
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वैवेल द्वारा 25 जून, 1945 में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों का सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था इसी सम्मेलन को शिमला सम्मेलन के नाम से संबोधित किया गया था। शिमला सम्मेलन का उद्देश्य भारत की तात्कालिक वैधानिक समस्या को सुलझाना था।
• शिमला सम्मेलन के आयोजन से जनता में उम्मीदें बंध गई थी जनता को विश्वास हुआ की जल्द ही स्वशासन की उनकी मांग पूर्ण हो पाएगी।
• शिमला सम्मेलन 25 जून, 1945 को प्रारंभ होकर त्रिदिवसीय बातचीत के पश्चात स्थगित कर दिया गया।
• यह सम्मेलन तात्कालिक वायसराय लॉर्ड बिस्काउंट वैवेल ने बुलाया जिसमे मात्र 21 नेताओं को आमंत्रित किया गया, सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खान ,तारा सिंह व इस्माइल खान थे। गांधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नही किया परंतु वे शिमला में मौजूद थे।मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना ने भाग लिया।
• 11 जुलाई को मोहम्मद अली जिन्ना लॉर्ड वैवेल से मिले और इस बात कर बल दिया की मुस्लिम लीग को ही समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधित्व माना जाए और वायसराय की सूची में मुस्लिम लीग से बाहर का कोई मुसलमान शामिल नही होना चाहिए।
• अतः मोहम्मद अली जिन्ना ने इस सम्मेलन में यह शर्त रखी के वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्ति हेतु मुस्लिमों का चयन वह खुद करेगी।
वेवेल योजना क्यों असफल हुआ
मुस्लिम लीग का यह रुख ही 25 जून से 14 जुलाई तक चलने वाले शिमला सम्मेलन के असफलता का कारण माना गया। इस प्रकार वैवेल योजना असफल रही। वैवेल ने 14 जुलाई को शिमला सम्मेलन की विफलता की घोषणा कर दी। अबुल कलाम आजाद मैं शिमला सम्मेलन को भारतीय इतिहास में जल विभाजन की संज्ञा दी है। कांग्रेस ने मुस्लिमों को समान प्रतिनिधित्व देने की मांग तो मान ली परंतु जिन्ना की मांग को स्वीकार करने से साफ मना कर दिया। शिमला सम्मेलन में वैवेल ने मुस्लिम लीग को एक प्रकार से वीटो (निषेधाधिकार) दे दिया, इसका प्रयोग वह किसी भी संवैधानिक प्रस्ताव के विरुद्ध कर सकती थी। इस प्रकार शिमला सम्मेलन के बाद लीग अधिक मजबूत होकर उभरी। यद्यपि वेबेल का मानना था कि भारत के सभी मुसलमान मुस्लिम लीग के अनुयायी नहीं है अतः जिन्ना की मांग से वह भी पूर्णतया सहमत नहीं थे।
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