डॉ. लतीफ योजना , राजगोपालाचारी योजना एवं लियाकत–देसाई फार्मूला

डॉ. लतीफ योजना , राजगोपालाचारी योजना एवं लियाकत–देसाई फार्मूला

डॉ. लतीफ योजना

डॉ. लतीफ ने भारत को सांस्कृतिक इकाइयों में बांटने व उन्हें पुनः संगठित करने की योजना बनाई। वे जनसंख्या का बडे़ पैमाने पर तबादला करने व उन्हे समान जातीय क्षेत्रों में बसाने के पक्षधर थे। क्रिप्स मिशन ने 1942 में पृथक पाकिस्तान की मांग को आंशिक मान्यता दी। इसके अनुसार ब्रिटिश भारत का कोई राज्य अगर भारत से अलग होना चाहे तो उसे यह आजादी होगी। 1943 में मुस्लिम लीग ने कराची अधिवेशन में बांटो और छोड़ो का नारा दिया। 23, मार्च 1943 को इन सभी सांप्रदायिक गतिविधियों के चलते पाकिस्तान दिवस मनाया गया। लॉर्ड वैवेल ने 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस में मुस्लिम लीग को एक प्रकार का वीटो पावर दे दिया।

राजगोपालाचारी योजना

1942 में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सी. राजगोपालाचारी ने यह राय व्यक्त की कि भारत की राजनीतिक समस्या का समाधान बिना पाकिस्तान की मांग पूरा किए संभव नहीं है। राजाजी के इस विचार को कार्य समिति ने अस्वीकार कर दिया। इसके विरोध में राजाजी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।
1944 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य सहयोग बढ़ाने हेतु कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सी. राजगोपालाचारी ने व्यक्तिगत स्तर पर किए गए अपने प्रयास के तहत एक फार्मूला प्रस्तुत किया, जिसे ‘ राजगोपालाचारी फार्मूला ’ कहा गया। गांधीजी ने भी इस फार्मूले का समर्थन किया था। इस फार्मूले के प्रमुख प्रावधान निम्न है–
• मुस्लिम लीग भारत की स्वाधीनता की मांग का समर्थन करे और अंतरिम सरकार की स्थापना में कांग्रेस का सहयोग करे ।
• द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक आयोग उत्तर पूर्वी व उत्तर पश्चिमी भारत में उन क्षेत्रों का निर्धारण करे, जहां मुसलमान स्पष्ट बहुमत में है। इस क्षेत्र में जनमत सर्वेक्षण कराया जाए तथा उसके आधार पर यह तय किया जाए कि वे भारत से पृथक होना चाहते हैं कि नही।
• देश के विभाजन की स्थिति में आवश्यक विषयों, प्रतिरक्षा ,वाणिज्य, संचार तथा आवागमन इत्यादि के संबंध में दोनो के मध्य कोई संयुक्त समझौता हो जाए।
• ये बाते उसी स्थिति में स्वीकृत होगी,जब ब्रिटेन भारत को पूरी तरह स्वतंत्र कर देगा।
जिन्ना ने इस फार्मूले को एक सिरे से नकार दिया।वह चाहता था कि कांग्रेस स्पष्ठत: द्वि राष्ट्रीय सिद्धांत को स्वीकार कर ले तथा उत्तर पूर्वी व उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में केवल मुसलमानों को ही मत देने का अधिकार मिले न कि पूरी जनसंख्या को। उन्होंने इस में प्रस्तावित साझा सरकार के गठन का भी विरोध किया। जिन्ना ने पूरा ध्यान केवल पृथक पाकिस्तान की मांग पर ही रखा जबकि कांग्रेस भारतीय संघ की स्वतंत्रता के लिए मुस्लिम लीग को पूर्ण सहयोग प्रदान किए जाने पर सहमत थी।

लियाकत–देसाई फार्मूला (1944)

भूलाभाई देसाई (केंद्रीय विधानमंडल में कांग्रेस नेता) और लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग के उपनेता) ने मिलकर केंद्र में अंतरिम सरकार बनाने का एक मसौदा तैयार किया, इसमें प्रावधान था कि –
1. अंतरिम सरकार में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनो केंद्रीय विधानमंडल में अपने समान सदस्यों को मनोनित करेंगे ।
2. सदस्यों में 20 प्रतिशत स्थान अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित रहेंगे लेकिन इस फार्मूले का कोई परिणाम नही निकला।
1945 के केंद्रीय विधानमंडल व 1946 के प्रांतीय विधान मंडलों के चुनावों में मुस्लिम लीग को मुसलमानों के लिए आरक्षित स्थानों में भारी बहुमत हासिल हुआ। केबिनेट मिशन (1946) ने पाकिस्तान की मांग को अव्यावहारिक बताकर अस्वीकार कर दिया। इस पर मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को सीधी कार्यवाही दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिन कलकत्ता और सिलहट में गंभीर सांप्रदायिक दंगे हुए। लीग अंतरिम सरकार में आरंभ में तो शामिल भी हुई लेकिन बाद में लीग नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल नहीं हुई किंतु लीग ने सरकार का हर क्षेत्र ने असहयोग किया। केबिनेट मिशन योजना के अनुसार जब संविधान सभा के चुनाव हुए तो लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया। माउंटबेटन की 3 जून ,1947 की योजना में भारत व पाकिस्तान नामक दो पृथक उपनिवेशों की स्थापना की व्यवस्था की गई। 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान अस्तित्व में आया एवं मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का गवर्नर जनरल घोषित किया गया।

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