सूफी मत का विकास || भारत का इतिहास
सूफी मत का विकास
इस्लाम में विभिन्न रहस्यात्मक प्रवृत्तियों और आंदोलनों को सूफीमत या तसव्वुक के नाम से जाना जाता है। सूफीवाद की शुरुआत एक सुधारवादी आंदोलन के रूप में इस्लाम धर्म में हुई, इसकी शुरूआत सर्वप्रथम ईरान ने हुई। यह एकेशवरवादी विचारधारा है। मूलतः इनका आधार इस्लाम ही था, परन्तु इन्होंने इस्लाम के कर्मकांड के स्थान पर उसके आध्यात्मिक पहलू पर अधिक जोर दिया। वे इस्लाम की मूल आत्मा में विश्वास करते थे न कि उसके बाहरी स्वरूप में। सूफी शब्द अरबी भाषा के शब्द सफा से बना है जिसका अर्थ है पवित्रता। अतः जो आध्यात्मिक लोग पवित्रता व सादगी का जीवन जीते थे वे सूफी कहलाए।
महिला रहस्यवादी रबिया (आठवीं सदी) और मंसूर बिन हल्लाज(दसवीं सदी) प्रारंभिक सूफी संत थे। मंसूर को फाँसी दे दी गई। मंसूर ने अपने को अनलहक (मैं ईश्वर हूं) घोषित किया। गंसूर समुद्री मार्ग से भारत आया। भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना से पूर्व ही सूफी संतों का आगमन प्रारंभ हो गया था। 12 वीं शताब्दी तक सूफी संप्रदाय का 12 सिलसिलों में विभाजन हो गया था। सूफी लोग पीर (गुरु) तथा मुरीद(शिष्य) के संबंध को अत्याधिक महत्व देते है। गुरु को मुर्शीद भी कहा जाता है। सूफी संत के उत्तराधिकारी को वलि कहते है।
सूफी सिलसिला दो वर्गों में विभाजित है
1. बा शरा –जो इस्लामी विधान (शरा) को मानते है।
2. बे शरा–जो शरा को नहीं मानते है।
इब्न–उल–अराबी(मृत्यु 1240 ई०) ने फुतुहात–ए–मक्किया में वहदत्त–उल–वजूद (ईश्वर का एकत्व) का सिद्धांत प्रतिपादित किया। शेख अलाउद्दीन सिम्मानी (मृत्यु 1336 ई०) ने इब्न–उल–अरबी के वहदत–उल–वुजुद के सिद्धान्त का खण्डन किया और उसके स्थान पर वहदत्त–उल–शुहूद का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार अल्लाह व सृष्टि के बीच अंतर होता है न कि समायोजन। यह विचार शरीयत के विचार से मिलता है। अबुल फजल ने आईने अकबरी में चौदह सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है। सूफी संत समा को ईश्वर प्राप्ति में सहायक मानते थे। सूफी संतों के विचारों व कथनों के संकलन को सामूहिक रूप से मलफूजात कहा जाता है जबकि सूफी सन्तों के पत्रों के संकलन को मकतूबात कहा जाता है। सूफियों के निवास स्थान ‘ खानकाह ’ कहलाते हैं।
अधिकांश सूफी सन्तों में राजसत्ता व सांसारिक वस्तुओं के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता था। उनके विश्व परित्याग की भावना को सूफी विचारधारा में तर्क–ए–दुनिया कहा गया। राज नियंत्रण से मुक्त आध्यात्मिक क्षेत्र को सूफी शब्दावली में विलायत कहा गया है।इसे चिश्ती सूफियों ने विकसित किया। भारत में इस्लामी रहस्यवाद की प्रथम पाठ्यपुस्तक फारसी भाषा में ‘ कश्फ–उल–महजूब ’ की रचना गजनी के निवास ‘अल–हुजवेरी ’ ने लाहौर में की। वे महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद लाहौर में आकर रहने लगे थे। बंगाल में हठ योग की पुस्तक अमृत कुण्ड का अनुवाद संस्कृत से फारसी में हो चुका था। बाद में सैयद मुर्तजा (मृत्यु 1662 ई०) ने योग पद्धतियों का अबू अली कलंदर की कलंदरिया साधना से तादाम्य स्थापित करते हुए योग कलंदर की रचना की।
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17 वीं शताब्दी में फारसी में लिखी गई पुस्तक दबिस्तान–ए–मजाहिब में सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।
प्रमुख सूफी सिलसिले एवं भारत में उनके संस्थापक
सिलसिला संस्थापक स्थान
1. चिश्ती ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर
(12 वीं सदी)
2. सुहरावर्दी। शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी मुल्तान
(12 वीं सदी)
3. कादिरी शाह नियामतुल्ला उच्छ
(15 वीं सदी)
4. फिरदौसी
(सुहरावर्दी से प्रभावित) शेख बदरुद्दीन समरकंदी बिहार
( 13 वीं सदी)
5. नक्शबंदी ख्वाजा बाकी बिल्लाह उच्छ
(16 वीं सदी)
6. शत्तारी शाह अब्दुल्ला शत्तारी जौनपुर
(सुहरावर्दी से प्रभावित) (15 वीं सदी)
भारत में इनके आगमन का क्रम चिश्ती– सुहरावर्दी –फिरदौसी –शत्तारी –कादिरी– नक्शबंदी था।
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मध्यकालीन इतिहास से सम्बंधित प्रश्न
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