गुप्तकालीन मंदिर निर्माण शैली

गुप्तकाल भारतीय इतिहास का एक ऐसा युग था जिसे “स्वर्ण युग” के रूप में जाना जाता है। इस काल में न केवल कला और संस्कृति का उत्थान हुआ, बल्कि वास्तुकला, विशेष रूप से मंदिर निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। गुप्तकालीन मंदिर निर्माण शैली भारतीय स्थापत्य कला की नींव मानी जाती है, जिसने बाद की शैलियों को विकसित करने में मार्गदर्शन प्रदान किया। इस युग में मंदिर निर्माण वास्तुकला की विभिन्न विशेषताएं उभरीं, जिनमें साधारण संरचनाओं से लेकर जटिल डिजाइनों तक का विकास देखा गया।

गुप्तकालीन मंदिर निर्माण की विशेषताएं

  1. सरलता और प्रारंभिकता
    गुप्तकालीन मंदिर निर्माण की प्रारंभिक विशेषता इसकी सरलता थी। इन मंदिरों में भव्यता और जटिलता की तुलना में सादगी थी। गुप्तकालीन मंदिरों का प्रारंभ छोटे और साधारण संरचनाओं से हुआ, जो एक गर्भगृह (मूल मंदिर) और एक मण्डप (सभा स्थल) तक सीमित थे।
  2. पत्थरों का उपयोग
    गुप्तकाल से पहले के मंदिर मुख्य रूप से लकड़ी से बनाए जाते थे। गुप्तकाल में पत्थरों का उपयोग अधिक प्रचलित हुआ। इसने मंदिरों को अधिक स्थायित्व प्रदान किया। पत्थरों की नक्काशी और मूर्तियों के माध्यम से गुप्तकालीन मंदिरों को सजाया गया।
  3. नागर शैली की शुरुआत
    गुप्तकाल के मंदिरों में नागर शैली की नींव रखी गई। नागर शैली की प्रमुख विशेषता यह थी कि इसमें मंदिर के शिखर (ऊपरी भाग) का आकार सीधा और उर्ध्वगामी होता था। हालांकि गुप्तकाल के दौरान शिखर अधिक ऊंचे नहीं थे, लेकिन इस दिशा में यह पहला कदम था।
  4. गर्भगृह का विकास
    गुप्तकालीन मंदिरों में गर्भगृह का विशेष महत्व था। गर्भगृह वह स्थान था जहां देवता की मूर्ति स्थापित की जाती थी। यह मंदिर का मुख्य भाग था और अत्यंत पवित्र माना जाता था।
  5. मूर्ति निर्माण और सजावट
    गुप्तकालीन मंदिरों में मूर्ति निर्माण कला का विशेष योगदान रहा। देवी-देवताओं की मूर्तियों को बड़े ही कलात्मक और धार्मिक भाव से तराशा गया। मंदिरों की बाहरी दीवारों पर भी अद्भुत नक्काशी की जाती थी, जो उस समय की कला का बेहतरीन उदाहरण है।
  6. उपयोग की गई संरचनाएं
    गुप्तकाल के मंदिर संरचनात्मक दृष्टि से विकसित थे। इनमें स्तंभ, मण्डप और तोरण का उपयोग प्रमुखता से किया गया। स्तंभों की नक्काशी और उनकी भव्यता गुप्तकालीन मंदिरों की पहचान थी।

गुप्तकालीन मंदिर निर्माण शैली

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किस मंदिर में पहली बार शिखर का प्रयोग किया गया था?

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गुप्तकालीन दक्षिण भारत के मंदिरों का निर्माण किस शैली में हुआ था?

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गुप्तकाल में उत्तर भारत के मंदिरों का निर्माण किस शैली में किया गया है?

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गुप्तकालीन मंदिरों के निर्माण में किस शैली का प्रयोग नहीं हुआ है?

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बेसर शैली किन दो शैलियों का मिश्रण है?

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तिगवा का विष्णु मंदिर का निर्माण किस काल में हुआ था ?

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गोपुरम क्या हैं?

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नागर शैली को अन्य किस शैली के नाम से जाना जाता है?

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गुर्जर प्रतिहार शासको के द्वारा किस शैली का प्रयोग किया था?

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एक स्थान पर एक से ज्यादा मंदिरों के निर्माण की शैली को किस शैली के नाम से जाना जाता है?

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गुप्तकालीन मंदिरों के प्रमुख उदाहरण

 

  1. दशावतार मंदिर, देवगढ़ (उत्तर प्रदेश)
    दशावतार मंदिर गुप्तकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसमें विष्णु के विभिन्न अवतारों की नक्काशी की गई है। इसका शिखर, गर्भगृह, और मंडप गुप्तकालीन मंदिर शैली की परिपक्वता को दर्शाते हैं।
  2. भीतरी स्तंभ मंदिर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
    यह मंदिर गुप्तकालीन वास्तुकला के प्रारंभिक स्वरूप को दर्शाता है। इसमें स्तंभों पर की गई नक्काशी और उनकी सजावट गुप्तकालीन मूर्तिकला की उत्कृष्टता को उजागर करती है।
  3. सांची का मंदिर संख्या 17 (मध्य प्रदेश)
    सांची का यह मंदिर गुप्तकालीन शैली का आदर्श उदाहरण है। यह एक साधारण संरचना है, जिसमें वर्गाकार गर्भगृह और समतल छत है। इसकी सादगी और स्थायित्व गुप्तकालीन वास्तुकला की विशेषताएं हैं।
  4. उदयगिरि की गुफाएं (मध्य प्रदेश)
    उदयगिरि की गुफाएं गुप्तकालीन वास्तुकला और मूर्तिकला का अद्भुत संगम हैं। ये गुफाएं हिंदू धर्म को समर्पित हैं और इनमें भगवान विष्णु और शिव की मूर्तियां प्रमुखता से उकेरी गई हैं।

गुप्तकालीन मंदिर निर्माण शैली का प्रभाव

गुप्तकालीन मंदिर निर्माण शैली ने भारतीय स्थापत्य कला को नई दिशा दी। इस युग में विकसित शैलियों और तकनीकों ने बाद के कालों की वास्तुकला को प्रभावित किया। नागर शैली का विकास और मूर्तिकला की समृद्ध परंपरा दक्षिण और उत्तर भारत के मंदिर निर्माण में दिखाई देती है।

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